भूमि का स्वास्थ्य कैसे बनाएं ?
भूमि का स्वास्थ्य कैसे बनाएं ? धरती पर ही हमारा अस्तित्व निर्भर है फिर हम इसके स्वास्थ्य पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे रहे हैं। कभी कभी मैं सोचता हूं कि देश की ताकत क्या है ? कुछ लोग कहेंगे सेना, पर सेना को भी मात्र कुछ दिन खाना न मिले, तो लड़ पाएगी क्या ? खाने से ही हमें शक्ति मिलती है और यह भूमि से पैदा होता है। कोरोना काल में हमारे मेहनती किसानों ने करोड़ों भारतीयों को इस देश की उपजाऊ मिट्टी के बल पर पेट भरा और हमें संकट से उबारा। ऐसे में सेना क्या कर पाती ?
मानसूनी वर्षा और पर्याप्त पुरानी तकनीक पर आधारित हमारी खेती आज भी न केवल एक अरब चालीस करोड़ भारतीयों का भरण पोषण कर रही है साथ अब हम भारी मात्रा में खाद्यान्न निर्यात भी कर रहे हैं।
धरती पर ही हमारा अस्तित्व निर्भर है फिर हम इसके स्वास्थ्य पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे रहे हैं। कृषि में रसायनों के अंधाधुध प्रयोग हमारी भूमि बंजर होती जा रही है।
आइए देखते हैं कि हम सब अपनी धरती माता में कैसे सुधार करें
उर्वरकों के उचित प्रयोग
- मृदा परीक्षण कराकर फसल एवं प्रजातिवार संस्तुति के आधार पर ही उर्वरकों के प्रयोग से भूमि का स्वास्थ्य ठीक रहता है।
सही विधि व गहराई पर जुताई
- सही विधि एवं गहराई पर जुताई करने से भूमि की रचना में सुधार होता है। पोषक तत्व पौधों को मिलते हैं। जड़ों का विकास अच्छा होता है। हानिकारक कीटों व खरपतवारों का विनाश होता है तथा भूमि का स्वास्थ सुधरता है ।
उचित सिंचाई
- सही विधि एवं समय के साथ उचित मात्रा में सिंचाई से भूमि की उर्वरा शक्ति बनी रहती है।
जैविक भूमि शोधन
- जैविक विधि से भूमि शोधन जैव उर्वरकों का प्रयोग करने से भूमि का स्वास्थ्य बना रहता है।
फसल चक्र सिद्धांत का पालन
- फसल चक्र सिद्धांत का पालन करने भूमि का स्वास्थ्य सुधरता है।
भूमि सुधारकों का प्रयोग
- भूमि सुधारकों जैसे जिप्सम, पाइराइट, चूना आदि के प्रयोग से भूमि का स्वास्थ्य बना रहता है।
दलहनी फसलें लेने पर
- दलहनी फसलें वायुमंडलीय नाइट्रोजन का जमीन में स्थिरीकरण करती हैं जिससे भूमि की रचना में सुधार होता है।
फसल अवशेष का उचित उपयोग
- जब फसलें काट ली जाती हैं उनके ठूंठ, पत्ते, तना आदि फसल अवशेष खेत में छूट जाते हैं जिसको मिट्टी पलटने वाले हल से जोत कर पलट लेने से जीवांश खादें जमीन को मिल जाती हैं।
जैविक खाद का प्रयोग
- गोबर, वर्मी व नाडेप से बने कंपोस्ट भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने में बहुत उपयोगी होते हैं।
जीवांश की मात्रा में वृद्धि
- जैविक खाद के रूप में पालतू जानवरों के मल मूत्र प्रयोग करने से जमीन में जीवांश की मात्रा बढ़ती है।
गन्ने के अपशिष्ट शीरा का प्रयोग
- गन्ने के अपशिष्ट शीरा (प्रेसमड) को भी भूमि सुधारक के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
हरी खाद का प्रयोग
- दलहनी या सरसों कुल की फसलों को खेत में बोकर 45 से 50 दिन बाद काटकर मिट्टी पलटने वाले हल से मिट्टी में दबा कर पानी भरकर सड़ा कर हरी खाद बना लेते हैं जिससे भूमि में जीवांश की मात्रा बढ़ जाती है।
खली का प्रयोग
- तिलहनी फसलों का अवशेष खली अच्छी जैविक खाद होती है।
धान के अवशेष का उपयोग
- धान की कटाई के अवशेष ठूठों को सड़ाने से जो खाद बनती है, उससे भी भूमि का सुधार होता है।
अन्य खादों का उपयोग
- बायोडायनेमिक कंपोस्ट और सींग, जल कुंभी, नीम से बनी खादों से भी भूमि का स्वास्थ्य सुधरता है।
गर्मी की जुताई
- गर्मी की जुताई करने से खरपतवारों के बीज, हानिकारक कीड़ों के अंडे तथा रोग आदि के बीजाणु नष्ट हो जाते हैं और भूमि में सुधार होता है।
जल निकास की उचित व्यवस्था
- जल निकास की सही व्यवस्था से हानिकारक लवण पानी में घुलकर बाहर निकल जाते हैं। अत्यधिक पानी से भूमि की संरचना में खराबी आती है और उसका स्वास्थ्य बिगड़ता है।
खर पतवार नियंत्रण
- खरपतवारों का उचित समय पर सही विधि से नियंत्रण करने से उनकी संख्या कम होती है और पोषक तत्वों का ह्रास होने से बच जाता है।
जैविक फसल सुरक्षा संसाधन
- गोमूत्र, ट्राइकोडरमा, वाइवेरिया वेसियाना, एन पी वी वायरस आदि जैविक फसल सुरक्षा संसाधन हैं जिनके प्रयोग से भूमि का स्वास्थ्य सुधरता है।
मृदा परीक्षण
- मृदा परीक्षण कराकर उसकी रिपोर्ट के आधार पर और फसल की आवश्यकता अनुसार पोषक तत्वों को उचित विधियों से प्रबंध करने से भूमि का स्वास्थ्य बनता है। इसे एकीकृत पादप पोषण प्रबंधन या आई पी एन एम कहा जाता है।
आई पी एम
- फसल में रोग, कीड़ा एवं खरपतवारों के नियंत्रण में ऐसी विधियों का प्रयोग करते हैं जिनसे पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे और लाभदायक मित्र जीवों की संख्या बनी रहे जिससे भूमि के स्वास्थ्य में सुधार होता है। इसे एकीकृत नाशी जीव प्रबंधन या आई पी एम कहा जाता है।