पोषण के नये क्षितिज जंगली फल
बहुपयोगी हैं जंगली फल
जंगली फल मानव भोजन का साधन रहे है। इनके पोषण व औषधीय गुणों की सूचना एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक दी जाती रही है जिनका उपयोग वर्तमान में उन्नतशील उद्यानिकी विकसित करने में किया गया है। जंगली फलों के पौधे न केवल खाने योग्य फल देते हैं बल्कि ईंधन, पशुओं का चारा, दवायें व अन्य उपयोगी पदार्थ भी देते हैं।
प्रतिकूल दशाओं में बगैर निवेश के देते हैं फल
ये जलवायु व भूमि की प्रतिकूल दशाओं में असंख्य रोगों व कीटों के आक्रमण के बावजूद सफलतापूर्वक उगते है और बिना किसी निवेश के फल देते हैं। प्रकृति ने भारतवर्ष को विभिन्न जलवायु वाले क्षेत्रों में अनूठी वनस्पति सम्पदा के साथ शीतोष्ण, उपोष्ण व उष्ण कटिबन्धीय फलों को उगाने की क्षमता दी है।
आर्थिक लाभ के संभावनाएं
अधिकांश जंगली फल स्थनीय लोगों द्वारा ताजे ही खाये जाते है परन्तु कुछ को दूर के बाजारों में भी भेजा जाता है। फलों को विभिन्न परिरक्षित पदार्थो में बदलकर आर्थिक लाभ भी उठा सकते हैं। कुछ जंगली फलों के रसों से उत्तम पेय पदार्थ बनाये जाते हैं।
हिसालू
हिसालू सभी जंगली फलों में सबसे रसीला है जिससे लगभग 64 प्रतिशत रस प्राप्त होता है।
कायफल, अमीरी, पहाड़ फुट
इसके अतिरिक्त काला हिसालू, कायफल, अमीरी एवं पहाड़फुट से पौष्टिक-स्वादिष्ट रस प्राप्त होता है। जेम व जेली बनाने के लिये फलों में पर्याप्त पेक्टिन की उपस्थिति अनिवार्य है।
तुमुल, तिरमल, कैथ, आमरा, धुरचुक
पर्वतीय पपीता, तुमुल, चलता, जंगली चेरी, तिरमल, कैथ, आमरा, धुरचुक एवं हिसालू इसके लिये उपयुक्त हैं।
बेल का स्क्वैश
बेल से उत्तम गुणवत्ता का स्वादिष्ट स्क्वैश बनाया जाता है जो उदर विकारों में लाभदायक होता है।
आंवला,पपीता, बेल, तुमुल का मुरब्बा
मुरब्बा बनाने के लिये बेल, आंवला, पर्वतीय पपीता एवं तुमुल प्रयोग में लाये जाते हैं।
सिलोन ऑलिव, गिरवई, करील, करोंदा, लसोढ़ा, आमरा का अचार
आंवला, सीलोन ओलिव, गिरवई, करील, करौंदा, लसोढ़ा, आमरा आदि का अचार पसन्द किया जाता है।
आमरा, कैथ, इमली की चटनी
आमरा, कैथ व इमली से चटनी बनाई जाती है।
जंगली अनार का बीज मसाले के रूप में
जंगली अनार के शुष्क बीजों का प्रयोग मसाले के रूप में किया जाता है।
चिरौंजी शुष्क मेवा
चिरौंजी जैसी शुष्क मेवा को जंगलों से एकत्रित कर स्थानीय बाजारों में विक्रय के अतिरिक्त बड़ी मात्रा में निर्यात कर करोड़ों की विदेशी मुद्रा अर्जित की जाती है।
पोषक तत्त्वों से भरपूर हैं जंगली फल
सेब की एक कृष्य किस्म में 82.20 प्रतिशत नमी, 6.7 प्रतिशत शर्करा, 0.3 प्रतिशत प्रोटीन व 0.3 प्रतिशत खनिज तत्व तथा 5 मिग्रा. विटामिन ‘सी’ प्रति 100 ग्राम गूदे में पाया जाता है।
खजूरी में 18.42 प्रतिशत, कायफल में 12.65 प्रतिशत, जंगली अनार में 10.01 प्रतिशत उपस्थित शर्करा सेब से काफी अधिक है।
करील गूदा में 8.60 प्रतिशत, कैथ में 7.10 प्रतिशत, बेल में 5.12 प्रतिशत, गिरवई में 4.47 प्रतिशत एवं जंगली करौंदा में 4.09 प्रतिशत प्रोटीन सेब से कई गुनी अधिक है।
शरीर में विशिष्ट महत्त्व रखने वाले खनिज तत्त्व भी जंगली फलों में बड़ी मात्रा में उपस्थित रहते हैं। इस दृष्टिकोण से खजूरी 3.31 प्रतिशत, आंवला में 2.92 प्रतिशत मैडागास्कर प्लम में 2.76 प्रतिशत, बेल में 2.66 प्रतिशत विटामिन ‘सी’ पाया जाता है।
जंगली अनार, आमरा तथा बड़हल में भी विटामिन सी सेब से अधिक पाया जाता है।
जंगली फलों पर ध्यान देना क्यों जरूरी ?
कृष्य फलों पर दबाव घटाने व निर्धन व्यक्तियों को कम मूल्य पर पोषण उपलब्ध कराने के लिये ऐसी जंगली वनस्पतियों पर ध्यान देना होगा जिनमें खाने योग्य फल या बीज लगते हों।
भारत के जंगलों में उग रहे लगभग 250 ऐसे वृक्ष, झाडियां एवं लताएं चिन्हित की गई हैं जो खाने योग्य फल पैदा करती हैं इनमें कुछ उगाई जाने वाली स्पिशीज के जंगली रूप (सेब, नाशपाती, आडू, अखरोट आदि) भी शामिल हैं।